- SANJIV KUMAR I am Sanjiv Kumar . I was Treated for fistula. More … Read More
- MOHAMMAD AZAM I am Mohammad Azam . I was Treated for fistula. More … Read More
- JAI KUMAR YADAV I am Jai Kumar Yadav . I was Treated for fistula. More … Read More
- R. N. SAROJ I am R. N. Saroj . I was Treated for fistula and piles. … Read More
- MAUNI BABA A patient from Isckon Mauni Baba 98 years male,came … Read More
- RADHA MOHAN I am Radha Mohan. I was Treated for Preoperated and … Read More
- UMESH KUMAR I am Umesh Kumar. I was Treated for fistula completely and … Read More
- SEEMA BEGAM I am Seema Begam. I was suffering from Ulcerative Colitis. … Read More
- SHARDA PRASAD YADAV I am Sharda Prasad Yadav. I was suffering from Fistula. … Read More
- BUDHAI LAL I am Budhai Lal. I was suffering from Fistula. More details … Read More
- VANDNA I am Vandna. I was suffering from Fistula. More details are … Read More
- ROLI SRIVASTAVA I am Roli Srivastava . I was suffering from Fistula. More … Read More
- ANUP CHANDRA MISHRA I am Anup Chandra Mishra . I was suffering from Fistula. … Read More
- K. P. MISHRA I am K. P. Mishra . I was suffering from Ulcerative Colitis.… Read More
- AMIYA ARUN I am Amiya Arun. I was suffering from Fistula. More details … Read More
- PRAKASH SINGH I am Prakash Singh. I was suffering from Fistula. More … Read More
- AARON DAVID I am Aaron David. I was suffering from Fistula. More … Read More
- SAVITA YADAV I am Savita Yadav. I was suffering from Fistula. More … Read More
- SHAMIM AARA I am Shamim Aara. I was suffering from Fistula. More … Read More
- VISHWAS RATHI I am Vishwas Rathi. I was suffering from Ulcerative colitis … Read More
- H. C. SRIVASTAVA I am completely cured by Dr. V.B. Mishra. Below is my … Read More
- SAURABH KESARWANI Great Sir.... I really respect you and regard your … Read More
- DR. PARMESHWAR ARORA Congrats dear.....keep believing in your self.....u can … Read More
- MEENA MISHRA I am Meena Mishra, resident of Allahapur Allahabad. I was … Read More
- ANUJ Thanks a lot doctor for the nice treatment, I am feeling … Read More
मनुष्य के जीवन में नींद की उपयोगिता
निद्रा की कमी से रोगों को न्योता मिलता है :) पढ़िये संहिताओं, साइंस और अनुभव की त्रिवेणी से निकले सन्देश---
गंगा नदी के तट पर प्रातः घूमकर थोड़ा घाट के सौन्दर्य का आनंद लेने के लिये बैठे ही थे कि सब की तरह हमने भी मोबाइल में सोशल मीडिया को खंगाला| मित्र-मंडली में जुड़ने का आग्रह था| जुड़ गये| भूल भी गये| बहुत दिन बाद लम्बी बातचीत के बाद उनसे गहरी मित्रता हो गयी| एक दिन एक एलर्जिक राइनाइटिस के रोगी को हमने उन्हें दिखाने की सलाह दिया| जांच-पड़ताल के बाद कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आये| इलाहबाद के डॉ. वी.बी. मिश्रा जिनकी हम बात कर रहे थे उन्होंने रोगी को बताया कि आप प्रति रात कम से कम सात घंटे की नींद लिया करें तो आपका एलर्जिक राइनाइटिस शीघ्र ठीक हो जायेगा| तो क्या नींद का एलर्जिक राइनाइटिस से कोई रिश्ता है? हमने संहितायें पुनः सम्हाली| आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययनों और शोध-पत्रों का डाटाबेस खंगाला| आज की चर्चा पुनः नींद न लेने से उत्पन्न होने वाले पचड़ों पर केन्द्रित है|
आयुर्वेद में निद्रा को आहार एवं ब्रह्मचर्य के समकक्ष जीवन का उपस्तम्भ माना गया है। आयुर्वेद का मानना है कि उचित समय व मात्रा में नींद व्यक्ति को पुष्टि, साफ रंग, बल, उत्साह, तेज भूख, अनालस्य व धातुसाम्य देती है (सु.चि. 24.88): पुष्टिवर्णबलोत्साहमग्निदीप्तिमतन्द्रिताम्। करोति धातुसाम्यं च निद्रा काले निषेविता।। सुख-दुःख, दुष्टि-पुष्टि, मोटापा-पतलापन, बल-दुर्बलता, पुंसत्व-नपुसंकता, ज्ञान-अज्ञान, जीवन-मृत्यु सब निद्रा पर ही आधारित होते हैं। पर्याप्त नींद हमें सुखी, पुष्ट, बली, ज्ञानी व दीर्घायु बनाती है। सूर्योदयकाल/ सूर्यास्तकाल में सोना (मिथ्यायोग), उचित मात्रा से कम नींद (हीनयोग) या उचित मात्रा से अधिक सोना (अतियोग) स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। रात्रि में सही समय पर नींद लेने पर स्वस्थ शरीर और सुखी जीवन तो मिलता ही है, यह सम्पन्नता का आधार भी है (च.सू. 21.36-38): निद्रायत्तं सुखं दुःखं पुष्टिः कार्श्यं बलाबलम्। वृषता क्लीवता ज्ञानमज्ञानं जीवितं न च।। अकालेऽतिप्रसङ्गाच्च न च निद्रा निषेविता। सुखायुषी पराकुर्यात् कालरात्रिरिवापरा।। सैव युक्ता पुनर्युङ्क्ते निद्रा देहं सुखायुषा। पुरुषं योगिनं सिद्ध्या सत्या बुद्धिरिवागता।। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर हम उचित मात्रा और समय पर नहीं सोते तो उपरोक्त वर्णित लाभों के उलट हानि ही होना है|
दरअसल आज नींद उड़ाने के कई कारण हमारी जीवा-शैली में घुस गये हैं| उदाहरण के लिये विरेचन, डर, चिन्ता, गुस्सा, बहुत अधिक धूमपान और व्यायाम, व्रत, रक्तमोक्षण, कष्टकारी बिस्तर, सतोगुण की अधिकता या योगाभ्यास, तमोगुण पर विजय, कार्यो की अधिकता, बुढ़ापा, दर्द व वात विकारों के बढ़ने से नींद नहीं आती है (च.सू. 21.55-57): कायस्य शिरसश्चैव विरेकश्छर्दनं भयम्। चिन्ता क्रोधस्तथा धूमो व्यायामो रक्तमोक्षणम्।। उपवासोऽसुखा शय्या सत्त्वौदार्यं तमोजयः। निद्राप्रसङ्गमहितं वारयन्ति समुत्थितम्।। एत एव च विज्ञेया निद्रानाशस्य हेतवः। कार्यं कालो विकारश्च प्रकृतिर्वायुरेव च।। ये तमाम ऐसे कारण हैं जिनसे हमारा दिन-रात वास्ता पड़ता है और हम अपनी नींद उड़ा बैठते हैं। रात भर जागते हैं और फिर दिन में सोने का बहाना ढूँढ लेते हैं| और फिर होती है शुरुआत तमाम समस्याओं की, जो हमें अंततः बीमार कर देते हैं|
दिन में सोने से स्वास्थ्य-संबंधी अनेक समस्यायें होती हैं| वस्तुतः ग्रीष्म ऋतु के अलावा अन्य ऋतुओं में स्वस्थ व्यक्ति के दिन में सोने से कफ और पित्त बढ़ते हैं। मोटे लोग, खूब घी खाने वाले लोग, कफ प्रकृति या कफज रोगों से ग्रसित लोग और विष-पीड़ित लोगों को दिन में नहीं सोना चाहिये, अन्यथा, सिर दर्द, अंगों में भारीपन, अग्निमांद्य और पाचन शक्ति में कमी, जो असल में समस्त रोगों का मूल है, जी मिचलाना, त्वचा में चकत्ते, फुंसियाँ, खुजली, आलस्य, स्मृति एवं बुद्धि में गड़बड़ी, इन्द्रियों में अक्षमता, स्रोतोवरोध, बुखार जैसी समस्यायें होती हैं (च.सू. 21.44-49): ग्रीष्मवर्ज्येषु कालेषु दिवास्वप्नात् प्रकुप्यतः। श्लेष्मपित्ते दिवास्वप्नस्तस्मात्तेषु न शस्यते।। मेदस्विनः स्नेहनित्याः श्लेष्मलाः श्लेष्मरोगिणः। दूषीविषार्ताश्च दिवा न शयीरन् कदाचन।। हलीमकः शिरःशूलं स्तैर्मित्यं गुरुगात्रता। अङ्गमर्दोऽग्निनाशश्च प्रलेपो हृदयस्य च।। शोफारोचकहृल्लासपीनसार्धावभेदकाः। कोठारुः पिडकाः कण्डूस्तन्द्रा कासो गलामयाः।। स्मृतिबुद्धिप्रमोहश्च संरोधः स्रोतसां ज्वरः। इन्द्रियाणामसामर्थ्यं विषवेगप्रवर्तनम्।। भवेन्नृणां दिवास्वप्नस्याहितस्य निषेवणात्। तस्माद्धिताहितं स्वप्नं बुद्ध्वा स्वप्यात् सुखं बुधः।।
ऐसी जीवन-शैली त्रिदोष-भड़काऊ हो जाती है जिसमे नींद की कमी के साथ आहार, विहार, सद्वृत्त, स्वस्थवृत्त आदि भी सदैव नहीं सम्हाले जायें| उदाहरण के लिये तरमाल खाने, शारीरिक व मानसिक व्यायाम न करने और ख़ूब सोने से दिल के रोग होते हैं (च.सू. 17.34): अत्यादानं गुरुस्निग्धमचिन्तनमचेष्टनम्। निद्रासुखं चाभ्यधिकं कफहृद्रोगकारणम्।। बात तो और भी कठिन हो जाती है जब कार्यों की चिंता न की जाये, खूब बेहिसाब-किताब खाया-पिया जाये और खूब सोने से आदमी सुअर की तरह मोटा हो जाता है (च.सू. 21.34): अचिन्तनाच्च कार्याणां ध्रुवं संतर्पणेन च। स्वप्नप्रसङ्गाच्च नरो वराह इव पुष्यति।।
दिन में सोना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है| केवल अपवाद-स्वरूप संगीतज्ञ, गहन अध्येता, मद्यसेवी, थका-हारा, पैदल चलने से कमजोर, अजीर्ण का रोगी, घायल, बूढ़े, बालक, स्त्री, अतिसार व दर्द से पीड़ित श्वास रोगी, हिचकी से पीड़ित, उन्माद रोगी, वाहनों में बैठकर थके व जगे हुये लोग, गुस्सा, शोक व भय से दुःखी लोगों द्वारा दिन में सोने से धातुसाम्य, बल की वृद्धि, अंग-पुष्टि, व जीवन में स्थिरता आती है। इसके अलावा ग्रीष्म ऋतु में सूखापन, वात-वृद्धि, छोटी रातें होने से दिन में झपकी मारना हितकारी होता है (च.सू. 21.39-43): गीताध्ययनमद्यस्रीकर्मभाराध्वकर्शिताः। अजीर्णिनः क्षताः क्षीणा वृद्धा बालास्तथाऽबलाः।। तृष्णातीसारशूलार्ताः श्वासिनो हिक्किनः कृशाः। पतिताभिहितोन्मत्ताः क्लान्ता यानप्रजागरैः।। क्रोधशोकभयक्लान्ता दिवास्वप्नोचिताश्च ये। सर्व एते दिवास्वप्नं सेवेरन् सार्वकालिकम्।। धातुसाम्यं तथा ह्येषां बलं चाप्युपजायते। श्लेष्मा पुष्णाति चाङ्गानि स्थैर्यं भवति चायुषः।। ग्रीष्मे त्वादानरूक्षाणां वर्धमाने च मारुते। रात्रीणां चातिसंक्षेपाद्दिवास्वप्नः प्रशस्यते।।
संहिताओं के इन सन्दर्भों के साथ यह भी जानना आवश्यक है कि नींद के सन्दर्भ में आधुनिक वैज्ञानिक शोध और आयुर्वेद के दृष्टिकोण में कोई अंतर नहीं है| भाषा अलग है अर्थ एक ही है| असल में तो निद्रा के संबंध में आयुर्वेद का दृष्टिकोण आधुनिक वैज्ञानिक शोध से और भी पुख्ता हुआ है| इस विषय पर अब तक लगभग 2,25,000 शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं| आइये कुछ उदाहरण देखते हैं, पर सबसे पहले गंगा नदी के तट से शुरू हुई बात पर वापस आते हैं| डॉ. वी.बी. मिश्रा, जो देश के प्रख्यात आयुर्वेद सर्जन हैं, ने अनेक ऐसे रोगियों की एलर्जिक राइनाइटिस ठीक किया जो आधुनिक चिकित्सा पद्धति से हार थक चुके थे| उनकी चिकित्सा में ढेर सारी युक्ति तो होती है किन्तु किसी भी एक समय में औषधियों की संख्या बहुत कम होती है| सबसे पहले रोगी की उड़ी नींद सम्हालते हैं| इसके लिये आवश्यकता हो तो एंक्जीकैल देते हैं| नींद दुरुस्त करने के बाद जेवीएन-7 जैसी औषधि से दीपन, पाचन करते हुये अग्नि में समत्व बैठाते हैं, और अग्नि दुरुस्त होने के बाद एलरकैल नामक औषधि और जेरलाइफ नामक एक रसायन योग देते हैं| डॉ. मिश्र का मानना है कि एलर्जिक राइनाइटिस तो एक संकेत मात्र है| असल में तो नींद की कमी से ओज में ऐसी कमी आती है कि अंततः व्यक्ति किसी भी व्याधि से पीड़ित हो सकता है| डॉ. मिश्रा के अनुभव-जन्य ज्ञान से यह स्पष्ट हो जाता है कि लंबे समय तक एलर्जिक राइनाइटिस से पीड़ित रहना और क्लिनिकल जांच-पड़ताल के बाद भी कारण स्पष्ट नहीं हो रहा हो तो आपको अपनी नींद का लेखा-जोखा देखना होगा|
इस अनुभवजन्य ज्ञान को नई शोध से भी बल मिलता है| वर्ष 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन बिलकुल स्पष्ट कर देता है कि यदि नींद की गुणवत्ता, नींद का काल, नींद का कुल समय बिगड़ा हुआ है तो व्यक्ति एलर्जिक राइनाइटिस का शिकार हो सकता है| ऐसी एलर्जिक राइनाइटिस केवल गोलियां खाने से ठीक नहीं होगी| आपको औषधि के अपनी नींद भी ठीक करना होगा| अमेरिकन जनसंख्या के बीच किये गये इस अध्ययन से स्पष्ट होता है कि निद्रा के पैरामीटर्स जिनमें स्लीपलेटेंसी, इनसोमनिया, स्लीप-एपनिया, स्लीप-डिस्टरबेंस, स्लीप मेडिकेशन का प्रयोग और दिन के समय उनींदे रहना के कारण एलर्जिक राइनाइटिस के प्रकरण बढ़े हैं| ऐसे लोग बार बार अन्य रोगों से भी पीड़ित होने लग जाते हैं|
जैसा कि हम पूर्व में भी यहाँ चर्चा कर चुके हैं, वर्ष 2017 में प्रकाशित, 22,00,425 लोगों के बीच हुई शोध जिसमें 2,71,507 मृत्यु के प्रकरणों का आंकड़ा भी शामिल है, से पता चलता है कि लगभग 27 से 37 प्रतिशत तक जनसंख्या जरूरत से ज्यादा तथा 12 से 16 प्रतिशत जनसंख्या जरूरत से कम निद्रा लेती है। अपर्याप्त या आवश्यकता से अधिक निद्रा समग्र-कारण-मृत्यु-दर बढ़ा देती है। महिलाओं को विशेष ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि वे अनिद्रा के कारण सभी कारणों से होने वाली मृत्यु दर के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। इसी प्रकार 30 से 102 वर्ष की 11,00,000 महिलाओं और पुरुषों के मध्य अध्ययन के निष्कर्ष में सर्वोत्तम उत्तरजीविता उन लोगों की पायी गयी जो रात्रि में 7 घंटे की नींद पूरी करते हैं। किन्तु 8 घंटे या उससे अधिक समय तक सोने से भी मृत्यु का जोखिम बढ़ने लगता है। एक अन्य अध्ययन जो 13,82,999 महिलाओं और पुरुषों के बीच किया गया, जिनमें 1,12,566 मृत्यु के प्रकरण भी शामिल थे। इनका 4 वर्ष से 25 वर्ष तक फॉलो-अप किया गया। निष्कर्ष सिद्ध करते हैं कि सात घंटे से ज्यादा या कम सोना दोनों ही स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं।
अपर्याप्त या अधिक नींद और देर से सोने जाना स्पर्म-हेल्थ बिगाड़ देता है। इसे आयुर्वेद से जोड़कर देखने पर आयुर्वेद का क्षय भी स्पष्ट हो जाता है और उसके कारण ऑटोइम्यूनिटी तक के समस्या हो सकती है| रात में देर से सोना मोटापा और इन्सुलिन रेसिस्टेंस दोनों बढ़ाता है। कम और उचटी नींद और मेटाबोलिक डिसऑर्डर (जैसे मोटापा, मधुमेह-2) के बीच भी गहरा संबंध है। नींद की कमी से जूझते लोग दारू पिये ड्राईवर जैसे हैं, न स्वस्थ न उत्पादक और न ही सुरक्षित। गहरी नींद, सीखने की सतत दक्षता बनाये रखने के लिये आवश्यक है। नींद की कमी से कार्य-निष्पादन, निर्णय लेने की क्षमता, व दर्द सहने की क्षमता में गंभीर कमी आती है। लंबे समय तक स्लीप-डेप्राइवेशन से बौद्धिक क्षमता क्षीण होती है। मेमोरी-कंसोलिडेशन पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है।
असल में अध्ययन तो यहाँ तक हैं कि कम सोने वाले बच्चे पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं| अध्ययनों से ज्ञात होता है कि चार से नौ वर्ष की उम्र के जो बच्चे बहुत देर से सोते हैं उनमें बौद्धिक क्षमता व सीखने की क्षमता में कमी आती है। जो बच्चे नियमित रूप से नियमित समय पर नहीं सोते, उनका पठन-पाठन के महत्वपूर्ण विषयों में बौद्धिक प्रदर्शन कमजोर रहता है। सोलह से उन्नीस वर्ष के 7798 बच्चों पर हुये अध्ययन में पाया गया कि निद्रा की नियमितता, निद्रा का कुल समय तथा निद्रा में कमी का पढ़ाई में प्राप्त अंकों (ग्रेड पोइंट एवरेज) पर भारी प्रभाव पड़ता है। जो बच्चे 10 से 11 बजे के मध्य नियमित रूप से बिस्तर पर सोने चले गये उनके औसत प्राप्तांक सर्वोत्तम थे।
इन समस्याओं से निपटने के लिये क्या किया जाये? आयुर्वेद की दृष्टि से देखें तो अच्छी नींद लाने का उत्तम उपाय सुझाये गये हैं| अभ्यंग, उबटन, स्नान, दही, दूध व घी के साथ पकाये गये शालि-चावल खाना, मन संतुष्ट रखना, मन-पसन्द सुगंध व शब्दों का उपयोग, शरीर को दबवाना, आंखों का तर्पण, सिर व शरीर में लेप, सुखदायी बिस्तर और सोने का शांत और समुचित स्थान, समय पर सोना अच्छी नींद के उपाय हैं (च.सू. 21/ 52-54): अभ्यङ्गोत्सादनं स्नानं ग्राम्यानूपौदका रसाः। शाल्यन्नं सदधि क्षीरं स्नेहो मद्यं मनःसुखम्।। मनसोऽनुगुणा गन्धाः शब्दाः संवाहनानि च। चक्षुषोस्तर्पणं लेपः शिरसो वदनस्य च।। स्वास्तीर्णं शयनं वेश्म सुखं कालस्तथोचितः। आनयन्त्यचिरान्निद्रां प्रनष्टा या निमित्ततः।।
नींद न आ रही हो तो सिर और शरीर में हलके हाथ से तेल का प्रयोग करते हुये अभ्यंग करना लाभकारी होता है| मधुर, स्निग्ध, भोजन जैसे शालि चावल, गेहूँ, पीठी से बने पदार्थ जो गन्ने के रस व दूध में पकाये गये हों, नींद लाने में लाभकारी रहते हैं| रात में द्राक्षा, शर्करा, गन्ने का रस से बने पदार्थ लेना तथा मन-पसंद नरम बिस्तर और बैठकी आदि भी निद्रानाश को दूर करते हैं (सु.श.4.43-46): निद्रा नाशेऽभ्यङ्गयोगो मूर्ध्नि तैलनिषेवणम्| गात्रस्योद्वर्तनं चैव हितं संवाहनानि च|| शालिगोधूमपिष्टान्नभक्ष्यैरैक्षवसंस्कृतैः| भोजनं मधुरं स्निग्धं क्षीरमांसरसादिभिः|| रसैर्बिलेशयानां च विष्किराणां तथैव च| द्राक्षासितेक्षुद्रव्याणामुपयोगो भवेन्निशि|| शयनासनयानानि मनोज्ञानि मृदूनि च| निद्रा नाशे तु कुर्वीत तथाऽन्यान्यपि बुद्धिमान्|| स्वाभाविक रूप से तो नींद तब आती है जब मन थक जाये, इन्द्रियाँ क्रिया-रहित हो जायें, मन व इंद्रियाँ तमाम पचड़ों से मुक्त हो जायें (च.सू. 21.35): यदा तु मनसि क्लान्ते कर्मात्मानः क्लमान्विताः। विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा स्वपिति मानवः।। इसी से सम्बंधित तथ्य यह भी है कि हृदय जो चेतना का स्थान है, जब तमस से अभिभूत हो जाता है तब नींद आती है (सु.शा.4.34): हृदयं चेतनास्थानमुक्तं सुश्रुत देहिनाम्| तमोभिभूते तस्मिंस्तु निद्रा विशति देहिनम्||
इसलिये आज का मुख्य सन्देश यह है कि निद्रा को गंभीरता से लेना आवश्यक है| अमेरिकन एकेडमी ऑफ़ स्लीप मेडिसिन और स्लीप रिसर्च सोसाइटी के अनुसार वयस्कों को नियमित रूप से प्रति रात कम से कम 7 घंटे सोना चाहिये। केवल युवा वयस्क, नींद की कमी से उबरने वाले लोग या बीमार व्यक्ति प्रति रात 9 घंटे सो सकते हैं। अमेरिका के राष्ट्रीय नींद फाउंडेशन की सलाह यह है कि नवजात शिशुओं के लिये 14 से 17 घंटे, शिशुओं के लिये 12 से 15 घंटे, टॉडलर्स के लिये 11 से 14 घंटे, प्रीस्कूलर के लिए 10 से 13 घंटे, स्कूल-आयु वर्ग के बच्चों के लिये 9 से 11 घंटे, किशोरों के लिये 8 से 10 घंटे, युवा वयस्कों और वयस्कों के लिये 7 से 9 घंटे, और प्रौढ़ वयस्कों के लिये 7 से 8 घंटे सोना उपयुक्त है।
सारांश में कहें तो रात में सात घंटे से कम सोने से मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और स्ट्रोक, अवसाद, मृत्यु का जोखिम, प्रतिरक्षा तंत्र में बिगाड़, दर्द में बढ़त, खराब कार्य प्रदर्शन, रोजमर्रा के काम में बढ़ी हुई त्रुटियों, और दुर्घटनाओं का जोखिम बढ़ जाता है। असल में आयुर्वेद, आधुनिक वैज्ञानिक शोध और अनुभवजन्य ज्ञान से बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि शायद ही ऐसी कोई बीमारी हो जिसका जोखिम निद्रा-अभाव के कारण ना बढ़ता हो। असल में निद्रा एक प्राकृतिक औषधि है। पर्याप्त नींद लीजिये और स्वस्थ रहिये|
डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
(इंडियन फारेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी)
(यह लेखक के निजी विचार हैं और ‘सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांत’ से प्रेरित हैं|)